महावीर त्यागी का जन्म 31 दिसंबर,1899 को ग्राम दयारसी, मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। माँ जानकीदेवी तया पिता शिवनाथ सिंह की तीन संतानी में वे सबसे छोटे थे। उनके पिता ग्राम रतनगढ़,बिजनौर (उ० प्र०) के एक सम्मानित त्यागी ब्राह्मण परिवार के जमींदार थे।
प्रसन्न मुद्रा में गांधी जी से आशीर्वाद लेकर कर्मठ भाव से स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय हो गए। स्वतंत्रता आन्दोलन में त्यागी जी अनेक बार जेल गए और विभिन्न जेलों में रहे-विजनौर जेल, नगीना जेल, मेरठ जेल, फैज़ाबाद जेत्त, देहरादून जेत्त, नैनी जेल, आगरा जेल, बुलंदशहर जेल आदि। इस समयावधि में कम से कम 11 वर्ष इन्होंने जेल में विताए। अपने बंदी जीवन के इन वर्षों में इन्होने विभिन्न विषयों का गहन अध्यन किया। सन् 1921 के देशव्यापी असहयोग आन्दोलन में त्यागी जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। और तभी अक्टूबर-नवंबर में बुलंदशहर की अदालत में इन पर जो मुकदमा चला था, उसने एक बार फिर देशव्यापी ख्याति प्रदान की। महात्मा गांधी ने भी 'यंग इंडिया' में इस मुकदमे के विषय पर आधारित चार लेखों में त्यागी जी के व्यवहार व साहस की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। त्यागी जी एक अरसे तक देहरादून जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। तदुपरांत ये 1937 के बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी भी रहे। सन् 1923 से 1977 तक वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे।
त्यागी जी किसानों के अधिकारों के प्रबल प्रवक्ता ये। उत्तर प्रदेश में इस विषय के सुधारों में इनका प्रशंसनीय योगदान रहा। देहारादून जिले के जीनसार बावर क्षेत्र में भूमि-सुधार व किसानों के ऋण की समस्या को हल करने के लिए एक कमेटी बनी थी जिसमें त्यागी जी ने मेम्बर रहते हुए वहीं के किसानों के हित में कर्ज़ मुक्ति कानून बनवाया। सन् 1928 से ये यू० पी० किसान आन्दोलन में तो सक्रिय थे । सन् 1935 में वे यू०पी० के एम० एल०ए० बने और सन् 1947 तक रहे। तत्पश्यात् उन्हें संविधान सभा के लिए दिल्ली बुला लिया गया। सन् 1947-48 के सांप्रदायिक दंगो के समय यू०पी० लेजिस्लेटिव असेम्बली के मेम्बर रहते हुए भी त्यागी जी ने यू०पी० भर से कुछ स्वयंसेवकों को एकत्र किया और एक विशेष पुलिस दल का संगठन खड़ा किया जो दंगों में अपनी जान की परवाह न करके हिंदू-मुस्लिम जानें बचाकर जनता को राहत दिलाते व शांति स्थापित करते थे। इस पुलित संगठन को पू० पी० के सरकारी गजट में 'त्यागी पुलिस' का नाम दिया गया था। श्री गोविन्दवल्लभ पंत व श्री लाल बहादुर शास्त्री ने त्यागी जी द्वारा लोगों की जानें बचाने व शांति स्थापित करने के विषय में दिल खोलकर प्रशंशा की थी।
प्रोविजनल पार्लियामेंट में रहे (1950-52), और सन् 1952-57, 1957-62 व 1962-67 की लोकसभाओं में देहरादून सीट का प्रतिनिधित्व किया। सन् 1951-53 में त्यागी जी केंद्रीय सरकार के रेवेन्यू एंड एक्सपेन्डिचर के मंत्री रहे। अपने कार्यकाल में पहली वोलएंट्री डिस्कलोजर स्कीम इन्होंने ही सन् 1951-32 में चलाई थी। सन् 1953-57 में त्यागी जी ने मिनिस्टर ऑफ डिफेन्स ऑर्गेनाइजेशन का कार्यभार संभाला (जिसमें 1956 तक जवाहर लाल जी खुद डिफेन्स मिनिस्टर वे)। सन् 1957-59 में त्यागी जी डायरेक्ट टेक्सेज एडमिनिस्ट्रेशन इन्क्वायरी कमेटी के चेयरमैन रहे। इस कमेटी और कमीशन की सिफारिश पर ही इन्कमटैक्स ऐक्ट, 1961 की बुनियाद रखी गई थी। सन् 1962-6-4 में त्यागी जी पब्लिक एकाउंट्स कमेटी (पी०ए०सी०) के अध्यक्ष रहे।
अप्रैल, 1964 में श्री जवाहरलाल जी ने त्यागी जी को फिर अपनी केबिनेट में लिया-मिनिस्टर फॉर रिहेबिलिटेशन बनाकर। 15 जनवरी, 1966 को तानुकन्द समझोते के अंतर्गत शहाजीपीर, कार्यगल और टिथपाल आदि पाकिस्तान को लौटाने के विरोध में त्यागी जी ने मंत्रिमंडत से त्यागपत्र दे दिया। सन् 1967 में त्यागी जी पोस्ट एंड टेलीग्राफ टैरिफ कमेटी के चेयरमेन रहे। सन् 1968 में एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कमीशन के डायरेक्ट टैक्सेज के स्टडी ग्रुप के चेयरमैन रहते हुए त्यागी जी ने कुछ साल सिफारिश की जिनसे टेक्सेज कानून में और सुधार हो सके और उनको सरल भी किया जा सके। सन् 1998-69 में वे पांचवें फाइनेन्स कमीशन के चेयरमैन रहे। सन् 1970 में वे राज्यसभा के सदस्य हुए जहां वे सदन में पुरानी कांग्रेस के नेता रहे।
महात्मा गांधी के अत्यंत प्रिय त्यागी जी के संबंध सरदार पटेल, पं० जवाहरलाल नेहरू, गोविन्दवल्लभ पंत, रफी अहमद किदवई, मदनमोहन मालवीय जी आदि से बहुत ही पनिष्ठता के थे। दुर्गादास ने अपनी किताब 'इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरु एन्ड आफटर' में त्यागी जी के श्री मोतीलाल नेहरू से निकटतम संबंध के बारे में लिखा है। रफी
अहमद किदवई से संबंध रखने के कारण भारतीय राजनीति में त्यागी जी, केशवदास मालवीय, अजीतप्रसाद जैन और जगनप्रसाद रावत 'रफीयन्स' कहलाते थे।
त्यागी जी को भी अनुचित लगता उसका निःस्वार्थ भाव से भरपूर विरोध करते, पर किसी से द्वेष नहीं रखते थे। सन् 1938-59 में श्रीमती इंदिरा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने पर उन्होंने कड़ा विरोध किया तथा नेहरू जी को इस विषय पर एक पत्र भी लिखा।
पर्शिया, मिस्र, इटली, स्विटजरलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इंगलैंड, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, रूस और उज्बेकिस्तान वगैरह के दौरे करते हुए त्यागी जी को कुछ भी अच्छा लगता तो अपने देश के लिए सोचते, अपने या अपने परिवार के लिए नहीं। अक्टूबर सन् 1975 में उन्हें पैरालिसिस का आघात लगा और 22 मई, 1980 को नई दिल्ली में त्यागी जी का स्वर्गवास हो गया।
श्री महावीर त्यागी जी को शत शत नमन ।
"बिहार केसरी" डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (श्री बाबू) (1887–1961), भारत के अखंड बिहार राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री (1946–1961) थे। उनके सहयोगी डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह उनके मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री व वित्तमंत्री के रुप में आजीवन साथ रहे। उनके मात्र 10 वर्षों के शासनकाल में बिहार में उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला व सामाजिक क्षेत्र में की उल्लेखनीय कार्य हुये। उनमें आजाद भारत की पहली रिफाइनरी- बरौनी ऑयल रिफाइनरी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना- सिन्दरी व बरौनी रासायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना-भारी उद्योग निगम (एचईसी) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट-सेल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा, आजादी के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल-राजेंद्र पुल, कोशी प्रोजेक्ट, पुसा व सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय इत्यादि जैसे अनगिनत उदाहरण हैं। उनके शासनकाल में संसद के द्वारा नियुक्त फोर्ड फाउंडेशन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री एपेल्लवी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे बेहतर शासित राज्य माना था और बिहार को देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था बताया था।
अविभजित बिहार के विकास में उनके अतुलनीय, अद्वितीय व अविस्मरणीय योगदान के लिए "बिहार केसरी" श्रीबाबू को आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में जाना जाता है । अधिकांश लोग उन्हें सम्मान और श्रद्धा से "बिहार केसरी" और "श्रीबाबू" के नाम से संबोधित करते हैं।
स्मरणीय स्थान
जन्म स्थान - खनवां गांव (नवादा जिला) जहां उनका ननिहाल है। वहां मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने लगभग दो सौ करोड़ की लागत से कई योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम किया है। इनमें उनकी स्मृति में एक स्मारक भवन, पार्क, पॉलीटेक्निक कॉलेज, हॉस्पिटल, पावर हाउस, पावर ग्रिड इत्यादि का निर्माण प्रमुख हैं।
पैतृक गांव- माउर, बरबीघा(शेखपुरा जिला) यहां उनकी स्मृति में एक प्रवेश द्वार बनाया गया है, श्रीबाबू के पैतृक आवास पर व बरबीघा चौक पर एक-एक प्रतिमा स्थापित की गई है, विभिन्न शिक्षण संस्थाओं का नामांकरण श्रीबाबू की स्मृति में किया गया है इत्यादि।
कर्मभूमि गढ़पुरा- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधी जी ने गुजरात में साबरमती आश्रम से लगभग 340 किलोमीटर की पदयात्रा कर दांडी में अंग्रेजी हुकूमत के काले नमक कानून को भंग किया था। गांधी जी के आहवान पर बिहार में "बिहार केसरी" डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा "श्रीबाबू" ने मुंगेर से गंगा नदी पार कर लगभग 100 किलोमीटर लंबी दुरूह व कष्टप्रद पदयात्रा कर गढ़़पुरा के दुर्गा गाछी में अपने सहयोगियों के साथ अंग्रेजों के काले नमक कानून को तोड़ा था। इस दरम्यान ब्रिटिश फौज़ के जूल्म से उनका बदन नमक के खौलते पानी से जल गया था,पर वह हार नहीं माने थे। गढ़़पुरा के इस ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह के बाद महात्मा गांधी ने उन्हें बिहार के प्रथम सत्याग्रही कहा था। 82 वर्षों की घोर उपेक्षा के बाद गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा समिति बेगूसराय की पहल पर 2012 में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, 2013 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व 2014 में मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी वहां पहुंचे और बाधाओं के बावजूद, स्वतंत्रता संग्राम की इस अनमोल विरासत व श्रीबाबू की कर्मभूमि के दिन बहुरने लगे हैं। यहां एक स्मारक निर्माणाधीन है, इस हेतु भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है।
ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह की स्मृति में पिछले 8 वर्षों से एक पदयात्रा "गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा" का आयोजन किया जा रहा है। वर्तमान में यह पदयात्रा प्रतिवर्ष 17 अप्रैल को मुंगेर के श्रीकृष्ण सेवा सदन से प्रारंभ होकर वाया बलिया, बेगूसराय, मंझौल, रजौड़ 21 अप्रैल को गढ़़पुरा पहुंचती है। सरकार ने बेगूसराय से गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह स्थल तक जाने वाली लगभग 34 किलोमीटर लंबी सड़क का नामांकरण "नमक सत्याग्रह पथ" किया है। किसी भी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में नामांकित देश की यह सबसे लंबी सड़क है। गढ़़पुरा के छोटे से हॉल्ट जैसे स्टेशन का नामांकरण श्रीबाबू की स्मृति में "डॉ.श्रीकृष्ण सिंह नगर-गढ़पुरा" किया गया है जिसका स्टेशन कोड DSKG है। यहां करोड़ों की लागत से कई उल्लेखनीय विकास कार्य हुए हैं और यात्री सुविधाओं का विस्तार हुआ है।
मुंगेर में कष्टहरणी घाट के निकट गंगा नदी पर नवनिर्मित रेल सह सड़क पुल का आधिकारिक रूप से नामांकरण "श्रीकृष्ण सेतु" किया गया है। पटना में गांधी मैदान के उत्तरी भाग में राजधानी का सबसे बड़ा सभागार "श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल" का निर्माण किया गया है जहां उनकी एक आदमकद प्रतिमा भी स्थापित किया गया है। गांधी मैदान,पटना के पश्चिमी छोड़ पर श्रीबाबू की स्मृति में "श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र" की स्थापना की गई है।
बेगूसराय के जीडी कॉलेज, श्रीकृष्ण महिला कॉलेज, नगर निगम चौक, कचहरी रोड, श्रीकृष्ण इंडोर स्टेडियम व रिफाइनरी टाउनशिप में "बिहार केसरी" श्रीबाबू की स्मृति में प्रतिमा स्थापित की गई है। श्रीबाबू की स्मृति में यहां एक इनडोर स्टेडियम और कचहरी रोड पर जिला परिषद का एक विशाल कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स भी है।
मेजर आशाराम त्यागी का जन्म 02 जनवरी 1939 को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में श्री सगुवा सिंह के घर हुआ था। मेजर आशाराम के दो भाई-बहन थे, बड़े भाई, श्री पशुराम त्यागी और एक छोटे भाई, श्री श्याम सुंदर त्यागी। मेजर आसा राम त्यागी को 17 दिसंबर 1961 को 3 JAT रेजिमेंट में कमीशन दिया गया था I 1965 के भारत-पाक युद्ध में उनकी विशिष्ट वीरता के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
भारत-पाक संघर्ष की उत्पत्ति का पता वर्ष 1947 से लगाया जा सकता हैभारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की जड़ पाकिस्तान द्वारा किसी भी तरह से पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर पर कब्ज़ा करने की कोशिशें हैं। जम्मू-कश्मीर में युद्ध विराम रेखा और पाकिस्तान के साथ हमारी सीमाएँ वर्षों से एक संवेदनशील क्षेत्र बनी हुई हैं। पाकिस्तान ने इन सीमाओं के कई बिंदुओं पर समय-समय पर गोलीबारी, घुसपैठ और घुसपैठ का सहारा लिया है, जिससे भारत को रक्षात्मक उपाय अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। पाकिस्तान के इन प्रयासों का भारतीय सशस्त्र बलों ने सराहनीय बहादुरी और फौलादी लचीलेपन के साथ मुकाबला किया है, लेकिन संघर्ष को बढ़ने से रोकने के लिए हमेशा बड़े संयम के साथ काम किया है। 1965 का भारत-पाक युद्ध इन दोनों सीमावर्ती देशों के बीच लड़ा गया दूसरा युद्ध था। जबकि भारत अभी भी 1962 के भारत-चीन युद्ध से उबर रहा था, पाकिस्तान ने इसे ताकत के साथ जम्मू-कश्मीर को हासिल करने के अवसर के रूप में देखा, यह मानकर कि भारत रक्षा तैयारी के मामले में कमजोर है। युद्ध 24 अप्रैल 1965 को शुरू हुआ, जब पाकिस्तानी सेना ने कच्छ के रण में भारतीय क्षेत्र पर हमला किया और भारतीय क्षेत्र में छह से आठ मील अंदर तक घुस गई। भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जे का यह कृत्य भारत-पाक सीमा समझौते, 1960 और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरूआत के साथ कश्मीर में घुसपैठ की। 21 सितंबर 1965 को, 15 इन्फैंट्री डिवीजन के हिस्से के रूप में 3 JAT को पाकिस्तान के डोगराई गांव में दुश्मन के ठिकानों पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। मेजर आशाराम त्यागी के नेतृत्व में एक कंपनी डोगराई के पूर्वी किनारे से गुजरी, जहां डी कंपनी अभी भी लड़ रही थी, शहर के दक्षिणी किनारे तक। मेजर त्यागी ने दुश्मन की तैनाती और अपने पास उपलब्ध संसाधनों का आकलन करने के बाद अपनी कंपनी की सबसे आगे की प्लाटून के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया। कंपनी ने जीटी रोड पर एक एमएमजी को पिल-बॉक्स में बंद कर दिया, और फिर सड़क पार लड़ते हुए, पाकिस्तानी 23 कैवेलरी के एक सैनिक और 16 (पाक) पंजाब के अवशेषों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। बाद में, यह 8 (पाक) पंजाब की एक कंपनी की तीव्र स्वचालित गोलीबारी की चपेट में आ गया, जो डोगराई के दक्षिणी दृष्टिकोण की रखवाली कर रही थी।
एक वीरतापूर्ण हमले में पिल-बॉक्स को नष्ट कर दिया गया और रक्षकों को हटा दिया गया। इस कार्रवाई में मेजर त्यागी गंभीर रूप से घायल हो गए। डोगराई टाउनशिप के पूर्वी किनारे पर हमले में मेजर त्यागी ने साहसपूर्वक अपनी कंपनी की सबसे आगे की प्लाटून का नेतृत्व किया। पिलबॉक्स, रिकॉइललेस बंदूकों और टैंकों की एक टुकड़ी से किलेबंद इस क्षेत्र ने एक दुर्जेय सुरक्षा प्रदान की। दो गोलियों से घायल होने के बावजूद, मेजर त्यागी आगे बढ़े, पाकिस्तानी टैंकों को उलझाया, उनके दल पर हथगोले फेंके और टैंकों को सफलतापूर्वक अपने कब्जे में ले लिया। उसने एक मेजर को भी गोली मारी और संगीन से हमला किया। उनका अटल नेतृत्व तब तक जारी रहा जब तक कि दो और गोलियों के प्रहार ने उन्हें बेहोश नहीं कर दिया। अपने कमांडर से प्रेरित होकर, लोगों ने रैली की और दुश्मन के गढ़ पर सफलतापूर्वक कब्ज़ा कर लिया। डोगराई की लड़ाई में अनेक जाट सैनिकों ने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया। मेजर आशाराम त्यागी को असाधारण साहस के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। 28 अगस्त, 2015 को चार आन कॉमिक्स भी जारी की गईं, जो 1965 के भारत-पाक युद्ध में लड़ने वाले और महावीर चक्र से सम्मानित किए गए चार युद्ध नायकों की वीरता पर आधारित थीं।
श्री शान्ती स्वरूप त्यागी का जन्म सन् 1922 को मेरठ जिले के ग्राम कैथवाड़ी में हुआ था। उनके पिता महाशय हरिद्वारी लाल एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के कार्य -कर्ता थे। श्री त्यागी जी की शिक्षा देवनागरी कालेज और मेरठ कॉलेज में हुई। उन्होंने देश के स्वतन्त्रता संग्राम में अपने जिले में काफी प्रमुखता से कार्य किया और इसके लिए वे सन् 1940 से सन् 1945 तक अनेक बार जेलों में भी रहें, जहां पर उनको तरह-तरह की शारीरिक यातनाएं भी दी गई। स्वतन्त्रता के बाद भी उन्होंने कई बार मजदूर और किसान आन्दोलनों में भी हिस्सा लिया, भूख हड़ताल की और जेलों में भी गये। सन् 1955 में उन्होंने गोवा मुक्ति आन्दोलन में भाग लिया और एक जत्थे का नेतृत्व करते हुए गोवा की सीमा में प्रवेश कि इसके लिए उनको पुर्तगाली सैनिकों की राईफल बट द्वरा पिटाई खानी पड़ी जेल में भी रहे।
सन् 1971 में कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ कर वे कांग्रेस में शामिल हुए और सन् 1974 से सन् 1984 तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। उन्होंने सर्वधर्म सम्मान व एकता तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किये, सन् 1982 में उन्हें मेरठ से स्वर्गीय प्रधान मंत्री श्रीमति इन्दिरा गांधी जी ने राज्यसभा सदस्य के लिए मनोनीत किया और पुनः 1988 में स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी जी के कार्यकाल में भी राज्यसभा सदस्य के लिए मनोनीत किया गया। जिससे वे सन् 1994 में सेवा-निवृत हुए।
श्री शान्ती त्यागी जी का देहावसान 3 मार्च 2001 को हुआ ।
श्री शान्ती स्वरूप त्यागी को शत शत नमन ।
श्री ओम प्रकाश त्यागी का जन्म 1912 में ग्राम तौली, जिला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी माता ब्रह्म देवी त्यागी और पिता श्री राम स्वरूप त्यागी थे। उनकी शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हुई। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। वे सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा से जुड़े थे और अपनी मृत्यु तक वे इस संगठन के महासचिव बने रहे। .उन्होंने आर्य सभा प्रचारक के रूप में दक्षिण अफ्रीका, सुरेनाम, कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड और हॉलैंड जैसे अन्य देशों का दौरा किया और इन देशों में आर्य समाज की शाखाओं को संगठित और मजबूत करने में बहुमूल्य सेवा प्रदान की।
वह एक चतुर स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया। उन्होंने 1947 में हुए देश के विभाजन का विरोध किया। वह सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए और जनसंघ नेता के रूप में मुरादाबाद से संसद सदस्य (4th लोकसभा) चुने गए। बाद में उन्हें उत्तर प्रदेश के बहराईच से छटवी लोकसभा के संसद सदस्य रहे I वर्ष 1972- 1977 तक राज्यसभा सदस्य के रूप में चुने गये। इस प्रकार वह 16 वर्षों तक संसद सदस्य रहे और अपने पूरे उत्साह और क्षमता से देश की सेवा की।
संसद में उनके कार्यकाल में, धर्मांतरण पर प्रतिबंध नामक एक प्राइवेट विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था। वह धार्मिक कट्टरवाद और धार्मिक संरक्षण के ख़िलाफ़ थे। उन्होंने आरक्षण नीति और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना का विरोध किया। उन्होंने सभी भारतीयों के लिए एक ही आचार संहिता निर्धारित करने वाले कानून का भी प्रचार किया।
10 मई 1986 को हिन्दू धर्म का मान-सम्मान बढ़ाने में सहायक, महान सामाजिक कार्यकर्ता एवं राजनीतिज्ञ यह निस्वार्थ कार्यकर्ता इस संसार से चल बसा
श्री ओम प्रकाश त्यागी को शत शत नमन ।
रामधारी सिंह 'दिनकर' '(23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि मानते हुए इन्हे 'युग-चारण' व 'काल के चारण' की संज्ञा दी गई है। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल शृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
जीवनी
'दिनकर' जी का जन्म 24 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास राजनीति विज्ञान में बीए किया। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक हो गये। १९३४ से १९४७ तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया। १९५० से १९५२ तक लंगट सिंह कालेज मुजफ्फरपुर में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर 1963 से 1965 के बीच कार्य किया और उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने।
उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। अपनी लेखनी के माध्यम से वह सदा अमर रहेंगे। द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित उनके प्रबन्ध काव्य कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया।
1947 में देश स्वाधीन हुआ और वह बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रध्यापक व विभागाध्यक्ष नियुक्त होकर मुज़फ़्फ़रपुर पहुँचे। 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे, बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया। लेकिन अगले ही वर्ष भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया और वह फिर दिल्ली लौट आए। फिर तो ज्वार उमरा और रेणुका, हुंकार, रसवंती और द्वंद्वगीत रचे गए। रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाऐं यहाँ-वहाँ प्रकाश में आईं और अग्रेज प्रशासकों को समझते देर न लगी कि वे एक ग़लत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं और दिनकर की फ़ाइल तैयार होने लगी, बात-बात पर क़ैफ़ियत तलब होती और चेतावनियाँ मिला करतीं। चार वर्ष में बाईस बार उनका तबादला किया गया।
रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे, लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वह बेबाक टिप्पणी करने से कतराते नहीं थे। रामधारी सिंह दिनकर ने ये तीन पंक्तियाँ पंडित जवाहरलाल नेहरू के विरुद्ध संसद में सुनायी थी, जिससे देश में भूचाल मच गया था। दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा सदस्य के तौर पर दिनकर का चुनाव पणृडित नेहरु ने ही किया था, इसके बावजूद नेहरू की नीतियों का विरोध करने से वे नहीं चूके।
देखने में देवता सदृश्य लगता है
बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है।
जिस पापी को गुण नहीं
गोत्र प्यारा हो समझो उसी ने हमें मारा है॥
1962 में चीन से हार के बाद संसद में दिनकर ने इस कविता का पाठ किया जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू का सिर झुक गया था. यह घटना आज भी भारतीय राजनीति के इतिहास की चुनिंदा क्रांतिकारी घटनाओं में से एक है.
रे रोक युद्धिष्ठिर को न यहां जाने दे उनको स्वर्गधीर
फिरा दे हमें गांडीव गदा लौटा दे अर्जुन भीम वीर॥
इसी प्रकार एक बार तो उन्होंने भरी राज्यसभा में नेहरू की ओर इशारा करते हए कहा- "क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया है, ताकि सोलह करोड़ हिंदीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाए जा सकें?" यह सुनकर नेहरू सहित सभा में बैठे सभी लोगसन्न रह गए थे। किस्सा 20 जून 1962 का है। उस दिन दिनकर राज्यसभा में खड़े हुए और हिंदी के अपमान को लेकर बहुत सख्त स्वर में बोले। उन्होंने कहा-
देश में जब भी हिन्दी को लेकर कोई बात होती है, तो देश के नेतागण ही नहीं बल्कि कथित बुद्धिजीवी भी हिन्दी वालों को अपशब्द कहे बिना आगे नहीं बढ़ते। पता नहीं इस परिपाटी का आरम्भ किसने किया है, लेकिन मेरा ख्याल है कि इस परिपाटी को प्रेरणा प्रधानमंत्री से मिली है। पता नहीं, तेरह भाषाओं की क्या किस्मत है कि प्रधानमंत्री ने उनके बारे में कभी कुछ नहीं कहा, किन्तु हिन्दी के बारे में उन्होंने आज तक कोई अच्छी बात नहीं कही। मैं और मेरा देश पूछना चाहते हैं कि क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया था ताकि सोलह करोड़ हिन्दीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाएँ? क्या आपको पता भी है कि इसका दुष्परिणाम कितना भयावह होगा?
यह सुनकर पूरी सभा सन्न रह गई। ठसाठस भरी सभा में भी गहरा सन्नाटा छा गया। यह मुर्दा-चुप्पी तोड़ते हुए दिनकर ने फिर कहा- 'मैं इस सभा और खासकर प्रधानमन्त्री नेहरू से कहना चाहता हूँ कि हिन्दी की निन्दा करना बन्द किया जाए। हिन्दी की निन्दा से इस देश की आत्मा को गहरी चोट पहुँचती है।'
उत्तर प्रदेश के हृदय स्थल पश्चिमी भू भाग में, जहां जहां तक नजर जाती है, विशाल खेत फैले हुए हैं, वहां एक साधारण किसान परिवार में एक व्यक्ति ने जन्म लिया और उन अनगिनत वंचितों के लिए एक आवाज बन गया जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। अपने आप को चरण सिंह वादी कहने वाले श्री केसी त्यागी जी भारतीय राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति हैं, जो समाजवादी सिद्धांतों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता और भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं। श्री त्यागी ने सामाजिक न्याय, समानता और हाशिये पर पड़े लोगों के कल्याण की वकालत करते हुए कई दशक बिताए हैं। यह समाजवादी नेता श्री के सी त्यागी का पिछड़े, गरीबों, वंचित समुदाय ख़ासकर कृषि समुदाय के प्रति अथक समर्पण है जिसने उन्हें भारतीय राजनीति जगत में एक प्रिय और सम्मानित व्यक्ति में बदल दिया है।
प्रारंभिक जीवन:
श्री के सी त्यागी जी का जन्म 10 दिसंबर, 1950 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मोरटा गांव के एक छोटे कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम स्वर्गीय श्री जगराम सिंह त्यागी और माता का नाम स्वर्गीय श्रीमती रोहताश त्यागी था। उनका पालन-पोषण किसानों के परिवार में हुआ, जहाँ छोटी उम्र से ही कड़ी मेहनत, अनुशासन और ज़मीन से गहरा जुड़ाव उनमें पैदा हो गया था। श्री त्यागी जी ने खेती के बारे में बारीकियां सीखीं, और गरीब किसानो के दर्द को करीब से समझा। एक नेता के रूप में उभरना राष्ट्रीय प्रभाव समाजवादी मूल्य और वकालत श्री त्यागी जी की राजनीतिक यात्रा के केंद्र में समाजवादी मूल्यों के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता है। उन्होंने लगातार उन नीतियों और सुधारों की वकालत की है जो गरीबों, हाशिए पर रहने वाले समुदायों और श्रमिकों के कल्याण को प्राथमिकता देते हैं। उनके प्रयास भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के इर्द-गिर्द विमर्श को आकार देने में सहायक रहे हैं।
संसदीय सेवा:
श्री केसी त्यागी का राजनीतिक सफर उन्हें भारतीय संसद तक ले गया,1989 में जनता दल के टिकट पर हापुड़ लोकसभा क्षेत्र से अपना पहला संसदीय चुनाव जीता जहां उन्होंने कांग्रेस के बुध प्रिया मौर्य को हराया। उन्होंने नौवीं लोकसभा (1989-1991) सदस्य के रूप में हापुड़ लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया और उद्योग जगत पर संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष और केंद्रीय भंडारण निगम के अध्यक्ष पद पर कार्य किया है। उन्होंने बिहार राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्यसभा में संसद सदस्य (सांसद) के रूप में 7 फरवरी 2013 से 7 जुलाई 2016 भी कार्य किया। एक सांसद के रूप में उनके कार्यकाल ने उन्हें हाशिए पर मौजूद लोगों की चिंताओं को उठाने और ऐसे कानूनों पर काम करने की वकालत की, जिनका उद्देश्य वंचितों का उत्थान करना था।
किसानों और मजदूरों की वकालत:
श्री केसी त्यागी राजनीतिक करियर की आधारशिलाओं में से एक किसानों और मजदूरों के अधिकारों के लिए उनकी निरंतर वकालत रही है। वह उन नीतियों के मुखर समर्थक रहे हैं जो कृषि संबंधी मुद्दों का समाधान करती हैं और जमीन पर मेहनत करने वालों के हितों की रक्षा करती हैं। श्रमिक और वंचितों के अधिकारों के प्रति उनके समर्थन और श्रमिकों की स्थिति में सुधार के उनके प्रयासों ने उन्हें किसान, श्रमिक संघों और संगठनों के बीच सम्मान दिलाया है।
गठबंधन की राजनीति की धुरी:
श्री केसी त्यागी भारत में गठबंधन की राजनीति में सक्रिय भागीदार रहने के साथ धुरी बने रहे हैं। उन्होंने समाजवादी विचारधारा वाली समान विचारधारा वाली पार्टियों के बीच गठबंधन बनाने और उसे बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राजनीतिक गठबंधन बनाने की उनकी क्षमता ने राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर गठबंधन सरकारों की ताकत और स्थिरता में योगदान दिया है।
एक समाजवादी नेता के रूप में श्री केसी त्यागी का करियर सामाजिक न्याय, समानता और हाशिये पर पड़े लोगों के कल्याण के सिद्धांतों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। उन्होंने दलितों के उत्थान, किसानों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने और आम लोगों के हितों को प्राथमिकता देने वाली नीतियों की वकालत करने के लिए अथक प्रयास किया है। एक समाजवादी नेता के रूप में उनकी विरासत भारत में एक अधिक समतापूर्ण और न्यायपूर्ण समाज की खोज के लिए प्रेरित करती रहती है।
पिता का नाम: श्री हरीश चन्द्र
स्थायी पता : 111-एल14, नेहरू नगर, गाजियाबाद। दूरभाष-712588
स्थानीय पता : 19वी, दारूल शफा, लखनऊ। दूरभाष कार्यालय-238117 आवास-226828-
जन्म स्थल : वसंतपुर सैंतली, जनपद-गाजियावाद (कृषक परिवार में)
जन्म तिथि : 5 नवम्बर, 1948
शैक्षिक योग्यता : बी०ए०, एल०एल०वी०
सामाजिक एवं राजनैतिक विवरण: विद्यार्थी काल से राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के स्वंय सेवक : छात्र जीवन से विद्यार्थी परिषद में कार्यरत
1970-72 : विद्यार्थी परिषद में जिला मंत्री
1973-74 : जनसंघ के युवा संघ के जिला संयोजक
1977 : जनता पार्टी में जिला महामंत्री और जनता युवा मोर्चा के प्रान्तीय उपाध्यक्ष
1980-84 : भारतीय जनता पार्टी के जिला महामंत्री
1983-86 : दो बार गाजियाबाद बार एसोसियेशन के अध्यक्ष
1988-91 : भारतीय जनता पार्टी के गाजियाबाद शहर के नगर अध्यक्ष-
जून, 1991 : भारतीय जनता पार्टी से विधायक निर्वाचित (22 हजार मतों से)
जुलाई, 1991: राज्य मंत्री, राजस्व (उत्तर प्रदेश शासन)
19 अगस्त, 1992 : राज्य मंत्री, गृह (उत्तर प्रदेश शासन)
नवम्बर, 1993 : पुनः विधायक (46 हजार मतों से अन्तर से) प्रदेश के सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले तीसरे
अक्टूबर, 1996 : पुनः विधायक (68) हजार मतों के अन्तर से) प्रदेश में सर्वाधिक मतों के अन्तर से जीतने वाले तीसरे एवं भा०ज०पा० में पहले विधायक ।
मार्च, 1997 राज्य मंत्री, पंचायती राज (स्वतंत्र प्रभार)
जनवरी 98 से : बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री
अन्य गतिविधियाँ :
शिखर पुरूप एवं अभिव्यक्तियाँ अनेक" माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी के चार
: अनेक राजनैतिक आन्दोलनों/सत्याग्रहों में जेल यात्रा।
"गाजियाबाद विधायक संदेश" नामक मासिक पत्र का तीन वर्षों से प्रकाशन ।
भाषणों का संकलन एवं प्रकाशन ।
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के कार्य-कलापों पर टीका प्रकाशित करना।
रचनात्मक कार्यों में विशेष अभिरूचि ।
गाजियाबाद से हरिचन्द्र त्यागी सार्वजनिक पुस्तकालय का पिछले 5 वर्ष से संचालन महर्षिदयानन्द विद्यापीठ गोविन्दपुरम गाजियाबाद में विद्यालय की स्थापना
1. श्री भारत भूषण त्यागी एक किसान, शिक्षक और प्रशिक्षक हैं। आपने सह-अस्तित्व मूलक आवर्तनशील कृषि या समक के लिए एक सर्वसमावेशी सार्वभौमिक कृषि ढांचा तैयार करते हुए खेती की जानकारी के साथ अपनो दृष्टिकोण और प्रकृति के बारे में ज्ञान को एकीकृत किया है।
2. आपका जन्म 4 जनवरी, 1954 को उत्तर प्रदेश के ग्राम बीहटा में हुआ। आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से 1973-74 में बी.एससी. पूरी की। इसके बाद, आप अपने माता-पिता से प्रेरित होकर गांव के विकास और समृद्धि के लिए काम करने के लिए अपने गांव वापस आ गए। आपने गांवों में सामाजिक न्याय की कमी और खराब कृषि पद्धतियों को देखा। आप 1987 में खेती करने के लिए प्रतिबद्ध हो गए और काफी उत्सुकता से न केवल पर्यावरण को बचाने बल्कि बढ़ती आबादी की सहायता के लिए कृषि उत्पादकता बढ़ाने और किसानों की आय में वृद्धि करने के समाधान ढूंढ़ने के कार्य में लग गए। इस प्रकार तकनीक और खेती के तरीकों का अध्ययन करने के दस साल के संघर्ष की शुरूआत हुई और अंत में आपने उत्पादन से संबंधित प्रकृति के नियमों का पता लगा लिया। वर्ष 1997 में आपको मध्यस्था दर्शन सह अस्तित्ववाद की जानकारी प्राप्त हुई जिसने आपको काफी गहराई तक प्रभावित किया और उससे आपको प्रकृति को यथावत रूप में समझने में मदद मिली। अपने अध्ययन और खेती के अनुभव के साथ इसके एकीकरण से आपको अपेक्षित सफलता और समाधान प्राप्त हुए। आप बीहटा, बुलन्दशहर स्थित अपने खेत में किसानों के लिए साप्ताहिक प्रशिक्षण का आयोजन करते हैं।
3. आपने अनुभव किया कि मानव प्रकृति की एक इकाई है और प्रकृति अकेले अपनी सभी समस्याओं का समाधान कर सकती है। प्रकृति के साथ कई चीजों का विकास होता है और यह पूरक है, प्रतिस्पर्धी नहीं (अर्थात् सह-अस्तित्व) है। कीड़े-मकोड़ों, खर-पतवार, बहु- फसलों, मौसम, दूरी, समय आदि पर प्रकृति के नियंत्रण और संतुलन का नियम लागू है, और इन सब के आधार पर एक संरचना या व्यवस्था बनी हुई है। यदि कोई व्यक्ति इन नियमों का पालन करता है तो घनत्व, उत्पाद की गुणवत्ता के साथ-साथ विविधता, मात्रा में वृद्धि से समृद्धि और प्रचुरता आती है। आपने यह भी देखा कि प्रकृति की विपुलता का अनुभव करने के लिए. सबसे पहले प्रकृति को समझना जरूरी है और उसके अनुसार तैयारी और योजना बनाने और फिर अनुभव करने से पहले समझ के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता है। आपने यह सब ज्ञान एक मॉडल के रूप में इक्कठा किया जिससे किसान के आर्थिक लाभ में 4 से 5 गुणा वृद्धि हुई है।
4. आपने समक का सृजन किया और दुनिया के साथ अपने ज्ञान और समझ को साझा करना शुरू कर दिया। इस मॉडल को भारत भर में तथा नीदरलैंड, जर्मनी, मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों सहित पूरी दुनिया में महत्व और मान्यता मिली है। पिछले 10 वर्षों में, आपने 80,000 से अधिक किसानों, वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों, सुशिक्षित और जिज्ञासु नागरिकों को जानकारी प्रदान की है।
5. आप नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग गाजियाबाद, आईएआरआई दिल्ली, आईआईएफएसआर मोदीपुरम, निर्मल हिंडन अभियान, नाबार्ड, ग्रामीण बैंकों के प्रमुख रिसोर्स व्यक्ति हैं, और एमिटी, एसजीटी, टीएमयू आदि जैसे कई विश्वविद्यालयों में आपने प्रशिक्षण दिया है और परियोजनाएं कार्यान्वित की हैं।
6. आपने दुनिया भर में और राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए हैं, जिनमें ऑर्गेनिक वर्ल्ड कांग्रेस (2017). मल्टिपल बेस्ट फार्मर अवार्ड और प्रोग्रेसिव फार्मर अवार्ड आदि शामिल हैं।
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